अमर अभिलाषा कुमुद ने कहा-"प्रकाश, जरा बैठो। मैं तुमसे कुछ कहना 'चाहती हूँ।" प्रकाश बैठ गये। कुमुद ने कहा-"तुम इतने साहसी, 'पण्डित और विद्वान् होकर, दूसरों के अनुकरण की चेष्टा क्यों किया चाहते हो?" "महान् धात्माओं का अनुकरण करना ही चाहिये ।" "वह साधारण लोगों के लिये है-तुम्हारे जैसों के लिये नहीं । तुम्हें अपने का जीवन आदर्श बनाना पड़ेगा। तुम समान से छिपकर नहीं रह सकते।" "तुम चाहती क्या हो ?" "तुम्हें विवाह करके सद्गृहस्य बनना चाहिए।" "ओह, कुमुद यह बहुत कठिन है।" "तुम्हें कठिन ही. काम करना चाहिये । तुम्हें विवाह करना होगा, अपने लिये नहीं, आदर्श और मर्यादा की रक्षा के लिये।" सुशीला बीच में बोली-"यदि आप विवाह न करेंगे, तो मैं प्राण त्याग दूंगी।" प्रकाश हँस दिये । उन्होंने श्यामाबाबू की ओर देखा-उन- की भांखों में आंसू थे । प्रकाश की माँखें भी भर भाई। उन्होंने कहा-"कुमुद, क्या तुमने कोई पात्री ठीक कर रखी है ?" "नहीं तो क्या?" यह कहकर उसने मालती की ओर देखा। श्यामा ने कहा-"मालती-जैसी लड़की के जीवन का यथार्थ मूल्य तुम्हारा शरीर है । प्रकाश, तुम अपना शरीर मालती
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