- ३३२ अमर अभिलाषा "यह बुरा है, अयोध बालिकाओं को विधवा बनाना और सन पर निप्तुर विधान का प्रहार करना बुरा है।" "तब तुम उनके लिये विश्वा-विवाह उचित समझती हो?" "श्रवश्य; निसका हृदय शून्य हो, या वासना प्रबल हो।" "यह नियम क्या स्त्रियों के लिये है ?" "स्त्री-पुरुष दोनों के ही लिये ।" "पर क्या यह भयकर नहीं है, कि कुछ स्त्री-पुरुष अकेले जीवन व्यतीत करें ?" "उसी दशा में, जब कि दो बातें हों, निनका मैं वर्णन कर चुकी हूँ।" श्यामा यावू बोले-"परन्तु इन्द्रियाँ वही प्रवल है। जाने कर वे कुमार्ग में जाय, और गुप्त पापों की सृष्टि हो।" "मैं तो उत्तर दे चुकी । सारे पाप शून्य-हृदय करते हैं । जिनके लगन लगी है, वे न वासना में गिरते हैं, और न पाप उन्हें छ सकता है।" सुशीना बोली-"भापकी जीवन-चर्या क्या है ?" "मैं सदा श्वेत वस्त्र पहनती हूँ । चार घही भोर में उठती हूँ । सूर्योदय से प्रथम स्नान, और सन्या-चन्दन से निपट लेती हूँ। चटाई पर सोती हूँ, हार नहीं करती, एक समय रोटी और 'एक तरकारी खाती हूँ। प्रति मास ४ उपवास करती हूँ। मैं सिर्फ चार घण्टे सोती हूँ। आठ घण्टे पदती हूँ, और बच्चे को पढ़ाती हूँ, और बारह घण्टे इधर-उधर सेया-कर्म में व्यतीत
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