उपन्यास ३२९ विवश हूँ, इसलिये मैं तुम्हारे विवाह में भी नहीं भाई यो। प्रकाश स्वयं मुझे लेने आये थे।" स्थामायाबू ने भागे यदर कहा-"भाप युमुद देवी तो नहीं "मैं समुद ही हूँ।" "श्रोह !" उन्होंने लपफरर पच्चं को गोदी में टा लिया। योले-"प्रकाश पारन्यार लिम्ब चुका, पर पाप ऐसी मिपी, कि पता ही नहीं लगा। घाजी प्रकाश मारहा है। श्रय थाप सूटेगी नहीं। घर पर चलना ही होगा।" नहिला का एक भी धामह नहीं चला। रयामायायू यिना स्नान किये, मोटर में पेटकर घर लौट आये। मिसारिणी को पुलीस लेगई। पीछे उनकी व्यवस्था पागलखाने में कर दी गई। सनावनवाँ परिच्छेद गंदनी लिटक रही भो, एक साझ चबूतरे पर सीतलपाटी 'विकी थी, उस पर छः स्त्री-पुरप बैठे थे। लियों में, सुशीला, मानती और कुमुद, और पुरुषों में याना यापू, प्रकाश और एक व्यक्ति निनका परिचय प्रागे मिलेगा। प्रकाश ने कहा-"कुमुद, मैंने पटीची चेष्टा की-माई से 'पदा, पर तुम्हारा पता नलगा।"
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