उपन्यास ३२३ ! - पदम्मी बोले-"हम क्या खाने को नाते हैं, नो बुलाने की बाट देखें ? सैर-तमाशे को सभी जाते हैं, उसमें बुलाया क्या? चलो भाई मौंदूनी !" परितनी योले-"हां, तमाशे में क्या हर्ज है ? चलो देखें, कि किस तरह व्याह होता है ?" गरज, धीरे-धीरे सभी चल दिये। यह अभागा ब्राह्मण- मण्डल अपनी कुल-फान, यहप्पन, नद पर लात मारकर टुकड़ों के लालच से मख मारता चल सदा हुधा । महृदय पाठक ! इस दुश्य को देखकर आपको दुःख तो हुभा होगा। जिन्हें ऋपि-सन्तान होने का दावा है, जो कहते है, कि उनके द्वार पर चक्रवती की शक्तियां करें खाया करती थीं, जिनके वचन में अमोघ शक्ति थी, जो तेजपूर्ण यशस्वी अपनी भूकटी-विलास में अष्ट-सिद्ध नव-निद्धि रखते थे, उनके ही कुलांगार पान टुकड़ों के लिये भिखारी से भी निलंज्ज बने, विना युनाये उसी द्वार पर जारहे हैं, जिसे ये हृदय से पतित, अधर्मी, पातकी और अस्पृश्य समझते थे। छिः! पाठक शायद हम पर नाराज हों, पर हम क्षमा मांगते हैं। क्योंकि इम सत्य कहने में विवश हैं। हम शपथपूर्वक कह सकते है, कि इस वर्णन में हमने नमक-मिर्च विल्कुल नहीं लगाया है। अस्तु, निस समय यह टुकड़नोर-मण्डल वहाँ पहुँचा, तब विवाह प्रारम्म होगया था। हवन कुण्ड और मण्डप सजे हुए थे। उच्चस्वर से वेद-पार होरहा था । सव क्रिया धीरे-धीरे सम्पूर्ण हुई,
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