उपन्यास "आप बुरा तो मानोगे, पर मैं इतना अवश्य कहूँगा, कि इतना भुगतकर भी आपकी आँखें नहीं सुनीं। सुबह का मटका शाम को भी घर थानाय, तो भी ठीक है। मैं आपसे विनती करता हूँ, कि आप छोटकी का व्याह कर डालिये। मुमसे बह देखी नहीं जाती है।" नयनारायण सिर नीचा किये कुछ सोचते रहे। हरनारायण-जो अब तक चुपचाप पढ़ा था-उठकर बैठ गया। उसने कहा "क्या आपने कोई पान तैयार किया है ?" राम "पान तैयार होने में क्या दे लगती है ? आपकी आज्ञा की देर है।" "हाँ, हमें मंजूर है, आप पात्र तैयार करें।" रामचन्द्र जयनारायण की ओर ताकने लगे। नयनारायण दीर्घनिःश्वास त्यागकर बोले-"मुझे मंजूर है, वर तलाश करिये।" रामचन्द्र हर्पित होकर बोले-"वर तैयार है। मालूम होता है, कल्याण का समय भागया।" दोनों ने उत्कण्ठा से पूछा-"कौन ?" "विट्ठलदास का लडका गमेश्वर।" अब तो दोनों दाप-बेटे मानों पासमान से गिरे। दोनों एक साथ बोल उठे-"क्या आप इसी करते है?" "क्या यह हसी का प्रसंग है ?" "क्या विठ्ठलदास का लड़का ? उसे क्या पड़ी है, जो मुम्
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