पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३२१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उपन्यास ३१३ हूँ अवश्य, पर मैं तुम्हारे सामने प्रतिक्षा करता हूँ, कि मैं उसका आध्यात्मिक गुरु और संरक्षक ही रहुँगा। तुम उसके लौकिक भाई हो। विकार की बात करना भी पाप है ! पर प्रकाश, चाहे भी जो-हो, मैं जानता हूँ, दोनों के शरीर में एक-दूसरे की प्यासी श्रात्मा कैद है। तब मैंने देखा, ये दोनों कभी न मिलेंगी, तभी मैं बीच में कूदा हूँ। मैं ईश्वर और अपने प्राणों की शपथ खाकर कहता हूँ, कि मैं जीवन-भर उसका आध्यात्मिक गुरु और संरक्षक रहुँगा-पति नहीं।" प्रकाश ने घबराकर उसके हाथ पकड़ लिये। उसने कहा- "श्यामा, श्यामा ! सेरा हृदय क्या तुम से छिपा है ? परदेखना, मेरी यात्मा की कमजोरी उस पर प्रमट न करना, और न उसे इस 'विषय पर कभी विचार करने का अवसर देना।" स्यामा ने शवासन दिया, और शपथ खाई। तब दोनों मित्र सारे थानन्दित जन-समूह में मिल गये। चौवनवाँ परिच्छेद गाँव-भर में इसका हज्ञा मच गया। प्रभागा हरगोविन्द बुरी तरह झुलस गया था, और वह थोड़ी ही देर में मर गया। मरती बार टूटी-फूटी जवान से जो कुछ कह गया था, उसे लेकर सव लोग भीत-चकित हुये इस घटना को सोच रहे थे। सब की जवान पर एक ही बात थी। चारों और चार-चांव मच रही थी। जय-