उपन्यास OVAJ स्वामीपजी ने विवाह-कृत्य प्रारम्भ किया । आपसी प्यारया, प्रवचन-शैली जिन्होंने देसी, उनले हदय पर वैदिन विवाह- पदति की एक मुहर होगई। योरोपियन चौ-पुरुप मुग्ध होकर सय कृत्य देख रहे थे। दो घरटे में विवाह कार्य सम्पन्न हुआ, और वर-वधु ने खड़े होकर सब को प्रणाम किया। फिर एक पार पुष्प वर्षा के साथ लव ने गम्भीर ध्वनि से दोनों को भाशीर्वाद दिया। इसी अवसर पर रायबहादुर साहेव ने १० हजार रु० की रसम विभपा-माह-प्रचारक फरक में दान दी, और इतनी ही घर पर री ओर से दी गई । भागत सज्जनों का पान-इना. यची और इत्र से सकार फिया गया। सभी लोग प्रसन-वदन विदा हुए । समाचारपत्रों में अगले दिन इस महत्वपूर्ण विवाह के सचित्र विवरए निकले । तीन दिन बाद बारात विदा हुई। दहेन से भरे हुये सन्दूकों को देख-देखकर, देखनेवाले 'वाह' करते थे। अवसर पाकर श्यामा वा प्रकाश को एक तरफ रहींच लेगये। उन्होंने प्रकार को सपा पर हाती ले लगा लिया, और हठात् उसका मुँह चूम लिया। प्रकाश ने उन्हें ढकेलकर कहा-"यह प्या गधापन है?" स्थामयाबू की माँखों से नर-मर भाँसू बहने लगे। वे बोलने की चेष्टा करके भी न चोल सके। इस बार प्रकाश ने उन्हें अंक में भरकर उन्हें चूम लिया। प्रकाश की चाँखें भी भर आई। योड़ी देर दोनों मित्र मानन्द के आँसू बहाते रहे। थावेग कम होने पर श्यामायाबू ने कहा--"प्रकाश, तुम्हारा मैं गुलाम हूँ।
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