३०८ अमर अभिलाषा 'बहुत अच्छा' कहकर वे सज्जन विदा हुये। रायबहादुर ने प्रकाश को बुलाफर कहा- "विवाह-वेदी का सव बन्दोवस्त तो ठीक है?" "जी हां, सब ठीक है । १२ पण्डित विवाह-वेदी पर वेद-पाठ करने को धानायेंगे | पाठशाला के सभी विद्यार्थी साम-गान करेंगे। दो हज़ार स्त्री-पुस्पों के बैठने का प्रवन्ध है । वेदी की सभी कार्य- वाही सभी देख सकेंगे।" "निमन्त्रण सब जगह पहुँचा दिया गया न ?" "नी हाँ, सब जगह पहुँच गया ! खास-खास नगह मैं स्वयं हो-नाया हूँ" "स्वामीजी महारान कब तक आ पहुंचेंगे?" "उनका तार मिल गया है। वे ४ बजे पापहुंचेंगे।" "पुरोहित का स्यान तो वे ही ग्रहण करेंगे न?" "वे और महात्मा देशराननी।" रायबहादुर सन्तुष्ट होकर कुर्सी पर लुढ़क गये। फिर बोले- "अच्छा बेटे, जरा तुम स्वयं एक बार जनांसे में चले जाओ, देखो, किसी की कोई शिकायत तो नहीं?" प्रकाश 'नो आज्ञा' कहकर चल दिये । रायबहादुर साहेब उठकर अन्तःपुर में आये । यहाँ स्त्री- मण्डल का बेढब नमघट था। गृहिणी सभी की भाव-भगत कर रही थी। थान-पर-थाल घले पा रहे थे । भण्डार सामग्री और पकवानों से भर रहा था।
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