पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३१०

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३०४ अमर अभिलाषा सकता है, यह तो मैंने कभी सोचा ही न था । न जाने कितनी स्त्रियाँ इस प्रकार नष्ट होरही हैं, और अवश्य ही यह इसकी अपराधमागिनी नहीं । जिस समान ने इन्हें पैदा करके यहाँ- तक गिरने में सहायता दी है, प्रकृत अपराधी तो वह समान है। इस दोप का निराकरण क्या कानून करेगा-निसमें सिम नियन्त्रण है ? क्या दण्ड से ऐसी पतित आत्माओं का सुधार हो सकता है ? हाय, कैसे शोक की बात है ! हिन्दू-जाति का बेड़ा इसी प्रकार ग़र्क होरहा है ! हिन्दू-जाति अपनी बहन-बेटियों के लिये जब तक इस कदर वेनयर रहेगी, उसकी दशा का सुधार नहीं होगा । स्त्री-जाति की यह दुरवस्था किसी भी जाति की छाती में भयानक क्षय की बीमारी है। इसके बाद ही मालती का मुकदमा उनके इजलास में पेश हुमा । मालतो ने संक्षेप से सब हालात अदालत में वयान कर दिये । श्रन्य स्त्रियों के भी बयान लिये गये । पुलिस के सव गवाह खतम होने पर अधिष्ठावानी पर फर्द जुर्म लगायी गई, और वे जमानत पर छोड़ दिये गये । मालती तथा अन्य स्त्रियों पर स्वेच्छानुसार जी-चाहे-नहाँ चले जाने को कहा गया । सब चली गई। पर मालती खड़ी रही। मैजिष्ट्र ट ने कहा-"अब तुम क्या चाहती हो?" "मुझे सुरक्षा से मेरे घर भेज दिया जाय।" "यह काम कौन करेगा ? कानून तो अपना काम कर चुका । 1 .