पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/३०१

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नपन्याम वह गाँव से बलात्कार करने हटाई गई थी। तव नाती वार गाडी से मुँह निकालकर, प्रोस् भरकर उसने एक बार अपने गांव को, उसके बीच में चमकते हुचे, अपने घर की सफ़ेद अटारी को देखा -हसरत फी और वाह की नजरों से । उसकी धारणा थी, कि श्रय क्या इस जन्म में ये भाई-बन्धु, घर-गाँव मिलेंगे?-कभी न मिलेंगे। वह सारे मार्ग रोती गई थी, पर विधि की विडम्बना देखिये-धूम-फिरकर वह फिर उसी गांव में पागई; फिर उसी गाँव का छोव-सा स्टेशन उसे प्राप्त हुया । पर वह कांपती क्यों है ? इस परिचित स्यान में उसके पैर लड़खड़ाते क्यों है ? यहाँ तो वह कई बार गाड़ी से उतरी थी। एक बार जय व्याह के बाद ससुराल से आई थी, तब भाई के साथ कैसी होंस से उतरी थी। धमफकर पैर पड़ते थे ! जल्दी घर नाफर प्यारी सखी चम्पा को देखने को, उसे कुछ प्राप-बीती सुनाने को पेट फूल रहा था। फिर एक बार अपने पति के साय गौने के बाद थाई थी। उसके याद ?- उसके बाद ही से उसका कर्म लूट गया, उसका सौभाग्य डूब गया; सतीत्व लुट गया; श्री नष्ट होगई; मान, सम्मान, गौरव सव ठिकाने लग गये थे । कहाँ रही वह धमक की चाल, वह कुलबुलाहट, उतावलापन, और चलता? कहाँ रही वह वाचा- लता? कहाँ रही वह घर जाने की उमझ नहाँ से अत्यन्त थपमा- नित होकर निकाली गई थी, जहाँ एक पल रहना भी कष्टकर था,पया यह वही घर है ? वहाँ जाने को उसे उतावनी होगी? एक दिन था, लव उसकी अवाई सुनकर घर-हार लिपा था।