उपन्यास कुछ प्रश्न करने का था, और भागन्तुक भी उसे देख, उसकी तरफ भारुष्ट हुमा । पर जब दोनों ने दोनों को पहचाना, तो तणेक के लिये दोनों कि-फर्तव्य-विमूद होगये। श्या ने देखा -मागन्तुक कोई नहीं, उसके गाँव के पटवारी का लड़का हर- नारायण है, और भागन्तुक ने देसा-वेश्या का सृष्ट, निर्लज्ज और कलुपित थाना पहने हुए उनके गाँव के चौधरी की इकलौती विधवा पुत्री है, जिसके सम्बन्ध में पाल पाँच वर्ष से प्रसिद्ध है, कि यह काशी-वास फर अपना परलोक सुधार रही है। उनके रदय में विद्युत् की तरह यह भाव दौड़ गया, कि इसी प्रकार का काशी-चाल पराने में यहन को लेकर शाया हूँ ? उनका सारा कर्तव्य-ज्ञान सोगया। वे टकटकी लगाये, वेश्या के मुख की ओर देखते रह गये। पहले येत्या ने मुन्न खोला। उसने कहा-"मीवर चले आयो; यहाँ सड़े रहना ठीक नहीं है।" मन्त्र मुग्ध की तरह हरनारायण भीतर चले पाये। उनके पीछे भगवती भी थी। उसके संकोच, लज्जा, त्या ग्लानि का कोई क्या वर्णन करेगा? भीतर सब के बैठ जाने पर हरनारायण ने कहा-"चमेली, तेरी यह हालत?" चमेली ने कुछ बरजती हुई जबान से कहा-"मेरी यह हालत किसने बनाई है?" "किसने बनाई है ?"
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