उपन्यास 39 से नव-जब दीये की लौ कम हो जाती है, तब वह उसे तिनके, से उकसाकर फिर सुई चलाने लगती है। युवती की अवस्था मुश्किल से १८ वर्ष की होगी। इसे अपूर्व सुन्दरी कह सकते हैं। परन्तु इसका सुनहरी शरीर विल्कुल पुराने और मामूली घरों से उका है । कोठरी में भी कुछ सामान नहीं है । एक मिट्टी का घड़ा, दो-तीन पीतल के वर्तन और एक छोटी-सी कपड़ों की पोटली। चारपाई और विौना घर में नहीं है। यह चटाई हो उसका बिछौना-मोदना है। यह सब तो युवती के अत्यन्त दरिद्र और अनाथ होने के. लक्षण हैं । परन्तु जो वस्तु वह सी रही है, वह बहुमूल्य रेशमी बनारसी साड़ी का कपड़ा है। उस पर बहुत बढ़िया सलमे की, बेल टाँक रही है। दो बनने से प्रथम ही उसने अपना काम पूरा किया। परिश्रम और सदी के कारण हड्डियाँ भकद गई थीं। उसने एक लम्बी साँस ली, और वस्त्र को सावधानी से लपेटकर एक ओर धर दिया, और तब उस चटाई पर पद रही। प्रात:काल होगया। पर कोहरा छा रहा था। युवती के पास कोई गर्म वस्त्र न था। कोयला-लकड़ी भी न थी। सदी से उसके होठ और मुख नीले हो रहे थे। वह शीघ्र उठ गई। हाय?- मुँह धोकर, और रात को वैयार किये हुये धन की पोटली को बाल में दबाकर घर से बाहर चली। ज्यादा दूर नहीं बाना पड़ा। निकट ही के एक पके घर में घुसकर, उसने देखा मालि किन अभी पलङ्ग पर गर्माई में पड़ी हैं। युवती को देखते हो
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