उपन्यास प्रथम उन कोमल भारलाओं के हृदय को मसोस डालते हैं, और फिर उन्हें सपने को मोरी धौर नायदानों में सेंक देते हैं। उनका कहना है कि इस रोग की कोई दवा नहीं है इस जाम का कोई मरहन नहीं है इस व्याधि फा कोई प्रतिकार नहीं है। धर्मशास्त्र की श्रावाज की यहाँ अवहेलना होती है, न्याय का गला घोटा जाता है, और अन्त की बात क्या?-ये पत्थरों से दया को भीख मांगनेवाले मनुष्य पशु थपनी यहन-बेटियों पर दया भी नहीं परत !दमा हिन्दू धर्म का तत्व-दर्शन ! यत, भगवती काशी भाई है। क्यों आई है? पाठक मानते हैं ? पुरय-सलिला गंगा में स्नान करने, अथवा पाया विश्वनाथ का दर्शन करने धर्म-ज्य का पुण्य लूटने नहीं, जाति ने पतित काक नारी को त्याग दिया है, पिता-माता ने पुत्री को त्याग दिया है, भाई बहिन को त्यागने घाया है ! रोश्रो, सहदय पाठफ, रोयो!-न रोसको, तो अच्छा है, तुम्हारे हृदय की प्रशंसा होगी। तुम्हारे कोई विधवा यहन-बेटी है ? यदि है,तो रोयो ! तुम्हारे रोने से सम्भव है, अमला के हृदय की ज्वाला कुछ शमन होजाय। वरण-तारणी काशी की मान्य-शोमा का कहाँ तफ वर्णन किया नाय ? समस्त मन्दिर देवालय विविध दीप-मालाओं से भालोकित होरहे हैं, और उनके प्रविविध की माला को हृदय परं धारण करके भावती गंगा अपनी तरंगों में मस्त चली जारही है, मन्दिरों के उब स्वर कलश, महालिकामों के धवन शिखिर,
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