उपन्यास लातों से उनका भुस कर रही थी। कोठरी के बाहर थाश्रम के सय स्त्री-पुरप समा धे। ये किवार तोरने की चेष्टा कर रहे थे। मालती ने ललकारकर कहा-"दुष्ट, कुत्ते ! तुझे मैं अभी जान से मारे पिन न छोगी। नू इस भौति भले घर की यह-येटियों फो याफाफर इस घट्ट में लाकर पेचने का धन्धा करता है। मागिनी अयलाशों की सहापावस्या से अनुचित लाम उठाता है। तू गाय की सूरत में सिंह है।" अधिष्टाताजी गिदागदा रहे थे, और मिश्वत कर रहे थे। याहर से दाज्ञा तोड़ने की चेष्टा होरही थी। मालती ने बार- पाई टलटफर धरती में पढ़े अधिष्ठाता पर डाल दी, उस पर मेज़ उलट दी, फिर उसने पीछे फी सिडको सोलकर चिल्लाना शुरू फिया । उसकी चिरनाइट सुनकर पास-पड़ोस के मनुष्य घरों में से झांकने लगे। गली में भी लोग इक होगये। पुलिस भी था गई। पुलिस-इन्स्पेक्टर के थाने पर मालती ने दर्वाजा सोल दिया। उसके बन चिपढ़े-धियदे होरहे थे, और वह पसीने से तर-बतर होरही थी। उसकी शौखों से भय भी भाग निफल रही थी, और वह अपनी पूरी ऊँचाई में तनी सड़ी थी। पुलिस-इन्स्पेक्टर के कहने से यह एक कुर्सी पर बैठ गई। इन्सेक्टर ने कहा-"श्रय योदा पानी पीनिये, और उपदी होकर ययान दीजिये।" मालती ने कहा- "इस पापपुरी में मैं मल नहीं पीने की; आप ययान लिखिये।" । -
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