२६६ अमर अभिलाषा मेहतरानी ने तीर खानी जाता देखकर कहा-"बहूनी ! तुमने कुछ सुना भी?" "क्या?" "सुसरी नुगाई मग्गो का नाम ले-लेफर ठौरऔर क रही है।" गृहिणी ने अधीर होकर कहा-"वकती है, तो बकने दे। भगवान् करे, उनके घर में भी यह कौतुक हो! भगवान् करे, उनके कोद चुपेजो पराई यात पर मटके !" मेहतरानी ने देखा, कि पूरी बात कहने का मवसर ही जा रहा है। वह बोली-"मैंने भी लुचियों को खूब सुनाई।" वृदा वहाँ खदी न रही, वह तीम्रता से भगवती की कोठरी की ओर लपकी। चवालीसवाँ परिच्छेद "थरी कुलच्छनी ! कुलचोरनी ! तू पैदा होते ही क्यों मर गई ? मेरी ही कोख में तुझे जन्मना था, सत्यानासन !!" भगवती 'विपण भाव से अकेली बैठी मन-ही-मन अपनी भवस्था पर विचार कर रही थी। पहनी वार निस काम को महा- दुष्पर्म समझकर अपराधिनी की भाँति कांप उठती थी,भब उसे वह दुष्कर्म नहीं समझती । अनेकों बार उसने मा-बाप, भावज-भाई
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