उपन्यास २६३ देवीनी दिना जवाब दिये, वहाँ से उठ खड़ी हुई। मालवी ने उसका पल्ला पकड़कर रोकना चाहा । देवीनी ने उसे धकेल- कर बाहर से कुरडा चढ़ा दिया। मालती अचानक धक्का खाकर गिर पड़ी। देवीनी यहाँ से सीढ़ी उतर आई, और एक नौकर को उस कोठरी में ताला बन्द कर देने की आज्ञा देदी। कोरी पर कड़ा पहरा भी बैठा दिया गया। तेंतालीसवाँ परिच्छेद वृद्धा गृहिणी अपने घर में उदास वैठी वर्तन मौन रही थी। उसका मुख फीका, आँखें तेन-हीन, और मन चल होरहा था। इतने में नारायणी रोती हुई माता के पास आई। गृहिणी ने कुछ उपेक्षा के स्वर में कहा-"क्या है ? क्यों रोती है?" नारायणी रोती रही। मावा ने फिर पूछा-"कुछ कहेगी भी, क्या हुआ ?" नारायणी ने रोते-रोते कहा-"कुन्दन की रहू नीनी को गाली दे रही थी।" "गाली दे रही थी क्यों? उसने उसका क्या किया है ?" नारायणी ने रोना बन्द करके कहा-"मैं पानी लेकर पा रही थी, उधर से कुन्दन की बहू, और अज्जो भा रही थी- मुझे देखकर वे तरह-तरह की बात कहने लगी।"
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