उपन्यास गये हैं। चारों ने धरती थासमान एफ कर डाला है। यह किसे खबर थी, फि तुम यहीं दिपो वैठी हो?" मालती ने घबराफर कहा-"प्रय क्या होगा?" "यही तो सोचना है।" यह फहकर वह व्यक्ति गम्भीर सोच में पद गया। फिर उसने देवीजी को सन्योधन करके कहा--"मुझे कचहरी का जरूरी काम-वरना में इन्हें बनारस जाकर यशवजी के सुपुर्द कर पाता । भव और किसे भेत् ? ऐसा करो, तुम्ही न चली नामो, मैं रेल में कैश दूगा। मणिकर्णिका पर ही तो यशोदा या व्हरेगे। मैं कचहरी से फारिग होते ही चना मार्केगा।" देवीजी ने कहा-"यह कैसे हो सकता है? आखिर फल-ई तो भाई की शादी है, फिर वहाँ से लौटकर शादी में कैसे शरीक हो सकती है?" "श्रम शादी में शरीक होना नहीं मिलेगा। देखती हो, लड़की कितनी घबराई है । इससे ज्यादा वे धयरा रहे होंगे। भव शादी को देखा नाय, या इस काम को?" इसके बाद उस व्यक्ति ने घडी देखकर कहा-"एक गाड़ी तो थमी छूट रही है। सिर्फ १५ मिनट की दर है। स्टेशन ५-७ मिनट का रास्ता होगा। लो, अय सोग-विचारी न करो, इस येचारी को यशोदा जी को आँप प्रायो। इस गादी से जाकर तुम कल तक मा-भी तो सकती हो।" देवीजी राजी होगई। &
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