२५६ अमर अभिलाषा. मालती पर इस सम्बोधन और भाषण का मला असर हुमा । उसने कुछ रुदन-भरे स्वर में कहा-"मैं दुष्टों के फन्दे में फंस गई है। पाप कौन है, नहीं मानती-पर मैं पशोदानन्दक जी की पुत्री हूँ, जो शहर के प्रतिष्ठित वकील है। भाप कृपाकर मुझे घर तक पहुँचा सकते हैं ? भापका वडा अहसान होगा।" मालवी की बात सुनकर उस व्यक्ति ने कुछ माँखें चढ़ाकर कहा-"अरे! भाप यशोदानन्दनजी की लड़की है? तब वो अपनी ही लड़की हुई। यशोदानन्दनजी वो अपने पुराने मित्र हैं।" इतना कहकर उस व्यक्ति ने कुछ प्रासले पर खड़ी एक सी की ओर देखकर कहा--"सुना तुमने देवीनी? ये विचारी यशोदानन्दननी की लड़की हैं-वही यशोदानन्दन, बिन्हें उस दिन तुमने दावत दी थी, जिस दिन दिप्टी साहेव हमारे यहाँ पाये थे।" इस पर देवीजी ने मुस्कराकर सिर हिला दिया, और तनिक निकट आकर कहा-"तुम्हारा नाम क्या है बीवी ?" "मेरा नाम मालती है।" उसने भरवस्त होकर कहा। "अरे, तुम मालती हो ? मैंने तुम्हें जरा-सी देखा था; भव इतनी बड़ी होगई ?" मालती अभी तक घबरा रही थी। उसने कहा-"कृपार भाप मुझे घर तक पहुंचा दें।" अब उस व्यक्ति ने कुछ चिन्तित स्वर में कहा-"पर घर में वो कोई है नहीं, भाज-ही सब जोग तुम्हारी खोज में बनारस'
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२६२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।