उपन्यास २५५ "लाहौलविला-बघत, ऐसा भी कहीं होता है ?" यसन्ती सोच में पड़ गई। अन्त में दोनों शैतानों ने उस बदनसीव को मुसलमान होने पर राजी कर लिया, और उसी दिन वह मुसलमान फरली गई। इसके बाद उसे समझा-बुझा- कर मुकदमे के झमट में न पड़ने को भी राजी कर लिया। वे दोनों कुत्ते उससे अपनी लिप्सा व्रत करने लगे। वर्ष था, दूर की दो रोटियाँ, और जरा-सा सालन ! अलबत्ता शराय की जो लत उसे पड़ गई थी, वह उससे न छूटी। यहां उसके पैर और भी बढ़ गये। क्यालीसवाँ परिच्छेद बिस पुस्य ने आकर मानती को सहारा दिया, उसे मानतो ने होश-हवास ठीक होने पर गौर से देखा। उसे देखकर वह भयभीत होगई। उसका लिंगना कद, भरभराया लाल चेहरा, छोटी-छोटी आँखें, खिचड़ी याल देखकर बह छिटककर जरा भनग ना-खड़ी हुई। उस व्यक्ति ने यथा-सम्भव अपनी खरखरी आवाज़ को मधुर बनाकर कहा-"मानरा क्या है वहिन नी; क्या मैं मापकी कुछ मदद कर सकता हूँ?
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