उपन्यास इसका जवान बेटा समा गया। तब से वे इसे छोदकर दूसरे घर में गये । इसके बाद बागरे के चापू आकर रहे । दूसरे ही महीने में उनकी घरवाली मर गई। श्रय यह देखो-पूरे दो वर्ष भी 'नहीं हुए-न्याहा-या नवान बेटा समा गया।" वृक्षा फी यात पर सब को श्रद्धा होगई सय ने मुंह लटकाकर कहा-"हाँनी ! ऐसे जले घर में कौन फले-फूले ?" एक खी अत्यन्त सावधानी से बोली- चम्पा के पाचा कहा करते हैं कि मकान पर धम-धम की भावाज़ और आग की-सी •लपट रात को उन्होंने खुद देखी-सुनी है।" इस पर सय खियाँ भयभीत होगई । हरगोविन्द की चूढी भौसी गम्भीरता से योली-"पास ही पीपल का पेड़ है ना! ग में मुदी फी क्रिया-कर्म तो होता नहीं था, यस, वे सय यहीं अव बनकर रहते है। इस पर एक नवोदा बोली-"क्यों मौसीजी! ये प्रेत अल-गये थादमी को क्यों सताते हैं ?" मौसी ने बढ़े इत्मीनान से कहा-"दूध, दही, मक्खन, मलाई -सान जो बालक उनके यान पर से निकले, उसे वे नहीं छोड़ते-क्योंकि यह उनके भोग की प्यारी वस्तु है। कोई भी इत्र-मुखेज लगाकर उधर से निकले, तो वे उसे भी मार 'राबते है।" यह बात सुनते ही मिन्नीलाल की बहू दर से कांप गई ! उसके कान में इसका फाया लग रहा था-सो उठकर उसने उपके से फेंक दिया ।
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