२४२ अमर आमलाषा धीजें चुराने लगा। नव पिता ने घर से निकाल दिया, तब पेट के लिगे इसने यह धन्धा फिया । शुरू में वेश्याओं के लिये वह लजीले शिकारों को ताफता रहता । बहुत-से नौसिखिए युवक, जिन्हें पाप के पथ में जाने का अभी अभ्यास नहीं, उसमें प्रसन्न होने योग्य निर्लज्जता भी नहीं-बहुधा गन्दे बाजारों में चक्कर लगाया करते हैं। उन्हें कोों पर चढ़ने का साहस प्रायः होता ही नहीं । गोपी-जैसे आदमी उनके लिये बड़े काम के होते हैं। गोपी ऐसे ही लडकों को सड़क के एक किनारे खड़े होकर भापता रहता था। ज्यों-ही 'वह समझता, शिकार ठीक है, वह भट-से आगे बढ़कर उनके सामने पहुँचता, मुस्कराकर एक सलाम मुकाता और धीरे-से कान में सुखद सम्वाद पहुँचाता, तथा जैसे गडरिया भेड़ों को जाता है, उन्हें अपने पीछे-पीछे लेनाता । गोपी को केवल पेट ही न था, उसे चण्ड, मदक पीने और कोकीन खाने की भी मादत पद गई थी। रोटी के विना काम चल सकता था, पर इन चीजों के बिना नहीं । इसलिये उसके गुजारे के लिये यह कुर्म छोड़, अन्य कोई वृत्ति ही न थी। परन्तु इस काम में उसे किसी प्रकार की मात्मनलानि होती हो, यह बात न थी। वह बड़े मज़े में था। इसमें भी उसने कुछ हथकण्डों के ढंग निकाल लिये थे । भव वह बाजारू वेश्याओं को अपेक्षा खानगियों से ज्यादा सम्बन्ध रखता था । वहाँ उनसे ज्यादा कमीशन मिल जाता था। वह कुछ चालाकियाँ भाकर गुजरता था । चालाकियाँ कैसी, यह भी सुनिये-'किसी अनभिज्ञ, - -
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