अड़तीसवाँ परिच्छेद प्रकाशचन्द्र के जेल जाने के बाद में नुशीला स्पिर माय से प्रकाश के पिता के सन्मुख का सदी हुई। यब उसके नेत्रों में भात न थे। यह सीधी पड़ी उन से कुछ कहना चाहती थी। प्रफान के पिता का नाम था, राय मोतीलाल यहादुर । उनकी मायु ५५ वर्ष से उपर होगी। चेहरा भरा हुमा, माया प्रशस्त और फटी हुई छोटी-मोटी मूडें । मुशीला को पास था। देख, वे दो कदम आगे यह शाये, और उसके सिर पर हाय रखते हुये बोले-"येटी, नमन में ग्लानि न फर, मुझे पुत्र के इस फट फा रा भी रख नहीं है। मुझे भय मेरे साथ चलना होगा, और बेटी की तरह रहना होगा। मुगला ने कहा "पूज्य पिता, मेरी एक प्रार्थना है।" "यह फ्या?" "मैं भाई को छुड़ाऊंगा, आप मुझे श्राक्षा दीजिये ।" "यह फिस तरह बेटी?" "भाई ने कुछ भी अपराध नहीं किया, उन्होंने स्त्री-जाति की मर्यादा की रक्षा की है, उन्होंने पवित्र फर्म को नियाहा है। यदि अंग्रेजी सरकार का कानून ऐसी सद्भावना को अपराध समझता है, सो मैं जीवन-पर्यन्त उस कानून को भंग करूंगी।
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