अमर अमिलापा X X X "चाहे भी कुछ हो।" X जन कुर्सी पर बैठे थे। मुकदमे की कई पेशियों लग चुकी थीं। थान फैसले का दिन था । अदालत में मनाटा छारहा था। अन्त में नन ने जलद-गम्भीर स्वर में फैसला सुनाया- "प्रकाशचन्द्र, इसमें सन्देह नहीं, कि तुम्हारा उद्देश्य पधिन्न 'और वीरोचित है, पर कानून को हाथ में लेकर ऐसी बड़ी घटना अपराध की श्रेणी में है। तुम्हारे मन में स्त्री-नाति का बड़ा मान है। उसी भाव में तुमने यह काम किया है। मैं तुम्हें ६ वर्ष का करिन कारागार देता हूँ, परन्तु सरकार से सिफारिश करता हूँ, कि वह तुम्हारे पानी-खान्दान, नेक-चलनी, सुशिक्षा और सदुद्देश्य का ध्यान रखकर यया-समय रियायत करे।" जन के बैठते ही पुलिस अभियुक्त को ले चली। बाहर भीड़ ने "प्रकाराचन्द्र की जय !" "वीर भाई कीजय !" के नारे घुलन्द करने प्रारम्भ किये । प्रकाश एक बार हसकर और सब को प्रणाम करके जेल की गाड़ी में चढ़ बैठा । गाड़ी धड़धड़ाती हुई जेल की ओर चल दी।
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