28 अमर अभिलाषा समय बहुत होगया था। मृतक के संस्कार की अव तैया- रियाँ होने लगी। पुरुष इसमें व्यस्त हुए, और अन्दन और चीकार के समूह को भेदन करके, त्रियों के हाथों से बलपूर्वक मृतक शरीर को छीनकर 'राम-नाम सत्य' का घोष करते चल दिये। उस शून्य-पट पर उस सुन्दर युवा बालक की-जिसने केवल बगद को झाँका ही था-श्रय स्मृति मात्र रह गई । उसका अस्तित्व नष्ट होगया। अंब उसका पार्थिव शरीर भस्मीभूत होने को चला गया। मनुष्य के जीवन का, फर्वव्य का, दृढ़ता, धैर्य और ममता का यह अद्भुत, भारचर्यजनक और न समझा बानेवाला घरय था! दूसरा परिच्छेद "क्या कहें वहन, सब कमी की लीला है !" यह कहकर शिवचरणदास की खी ने अपनी गहरी सहानुभूति दिखाने को एक लम्बी साँस ली! पास ही हरगोविन्द की वृद्धा मौसीठीयी। उसने कहा--"तीस वर्षसे तो मैं देखतीआरही हूँ-इस निपूर्वक में कोई नहीं फला-फूजा । पहले यह घर छज्जू मिस्सर का या- पर लेग में १५ ही दिन में उसका सब चौपट होगया। उसकी विधवा ने इसे.लाला माधोराम को बेच दिया। साल के भीतर
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