उपन्यास सुशीला, श्यामा यापू, प्रकाश के पिता-माता-गादि ममी भदालत में उपस्थित थे। पिता को देराफर उसने प्रणाम किया, और पामा यापू को देखकर जरा-सा हम दिया। ये लोग सप उदास थे। सिर्फ़ सुशीला रो रही थी-रोते-मोने उसको पनि सूब गई थीं। गुरुदमा प्रारम्भ होते-ही एक कील ने पाकर कहा-"मैं अपने-चापको घभियुक्त की ओर से उपस्थित करता है।" प्रकार ने उन्हें धन्यवाद देकर कहा-"इसकी घावश्यकता नहीं । तर मैंने कानून को हाथ में ले लिया, तो घर में उसकी सहायता न लगा।" जज ने नाम-घाम पूलकर उसका ययान लिया। प्रकाशचन्द्र ने बताया- "मेरा नाम प्रकाशचन्द्र है, घायु २३ वर्ष, नाति हिन्दु । मेरे पिता पक्षाय में उसका असर मैंला-कॉलेन का विद्यार्थी हूँ। सुशीना मेरी बहिन है। उसे मृत राजा ने फुसला- फर बलपूर्वक घर मंगवा लिया था। यह साहसपूर्वफ माग न पाती, तो उसकी पवित्रता अवश्य लूट ली नाती । दमने और भी कई हमले उक्त यालिफा पर किये थे। यह प्रसिद्ध दुराचारी रईस या। पालिका ने रोकर अपने पर अत्याचार होने की घटना सुनाई । मैंने देखा, कानून इस विषय में अपूर्ण है, और उसके भासरे वरना मदानगी के विपरीत है। मैं राना के पास गया, और टससे पूषा, कि तुम अपराधी हो, या नहीं? टसने अपराध
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