उपन्यास २२७ प्रवाह बह निकला । तीन दिन बीतने पर भी लय हालत खराब होती-ही गई, तय नपनारायण पास के नगर से सरकारी डॉक्टर को पुला लाए। डॉक्टर ने सहज-ही में भसली घटना का अनु- मान लगा लिया। भगवती उससे कुछ छिपा भी न सकी। डॉक्टर क्रोध-से लाल मुंह किये थाहर माया, उसने नयनारायण से एकान्त में लेजाफर फा-"मुझे तुम्हारी हालत पर अफसोस है, मगर मैं इस केस को विना पुलीस में दिये नहीं रह सकता।" जयनारायण पर बन गिरा। वह पत्थर की भांति निश्चल खड़ा, डॉक्टर का मुंह देखता रहा। 'डॉक्टर ने वहां से हट, हरनारायण को दवा दी। विधि भी यता दी, और नाकर गाड़ी में बैठ गया। जयनारायण दीदकर गादी के सामने भा-खदा हुआ। उसने कहा-"डॉक्टर साहय, इस पदनसीय चूदे की सदी का कुछ ध्यान कीजिये।" डॉक्टर ने देखा, और दृष्टि फेर ली, और कोचमन को बढ़ने का हुक्म दिया। सण-भर में गाँव-भर में बड़े डॉक्टर के पाने की बात फैल गई। 'भगवती को क्या हुआ है ?~~इसकी आलोचना होने लगी। भांति-भांति की चर्चा उठने लगी । जयनारायण पानेवाली विपत्ति से सामना करने को, सय की आलोचनाओं से मुक्ति पाने के विचार से घर में जाकर बैठ रहे। दिन उलते-ही दलयल-सहित पुलीस मा-धमकी । गाँव-मर जयनारायण के द्वार पर इकट्ठा होगया । श्री और पुरुष सय
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