पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२२४

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२२० अमर अभिलापा . लडकी थी। पतन होने योग्य उसके संस्कार न थे। साहस भी न था । संस्कार और स्वाभाविक भीरता उसके रक्षा-कवच थे। रामनाथ ने अब यह नियम बना लिया, कि मालती जत्र स्कूल जाने लगती तो यह द्वार पर खड़ा होनाता | स्कूल से थाने के समय भी वह उसे पफ यार देखने को घण्टों खडा रहता था। स्त्रियाँ चाहे और याते न समझ सक, पर-पुरुप की पाप- वासना को ज़रूर समझ लेती हैं। मालती ने भी रामनाय की कुदृष्टि को तक लिया। पहले वह कभी आवश्यकतानुसार रामनाय से वात कर भी लेती थी, अब वह विल्लुल उधर दृष्टि-पात न कर, मीधी निकल जाती। रामनाय बदा-ही निलंज्ज था। वह साहस करके खाँमने- खखारने और संकेत भी करने लगा। पर मालती के मन में उसके प्रति उपेक्षा और घृणा के भाव भरते हो गये। परन्तु यह चात उसने किसी से कही नहीं । कुसुद की ससुराल में आना तो उसने विल्कुल ही छोड़ दिया था। अब उसने पाठशाला जाने का भी दूसरा मार्ग तलाश कर लिया। मालती की एफ भौजाई का नाम कामलता था, पर उसे 'लता ही के नाम से सब पुकारा करते थे। यह खी नव-वयस्का थी। इसका विवाह हुए दो ही वर्ष हुए थे। इसके पति, मालती के भाई 'इलाहाबाद-लॉकोलेज में पढ़ते थे। फलतः लता अकेली ही रहती थी। यह मालती की समवयस्का भी थी। वह मालती के साथ सोती, खाती और बहुधा रहती थी । मालती की अपने