२१६ अमर अभिलापा थायो । खर्च-पानी का मय प्रबन्ध में कर लँगी।। तुम्हें कुछ भी न करना होगा। भाई की पारमा द्रवित हुई। उसने कहा-"उद, इस तरह पराई की तरह बातें क्यों करती हो? चाहे भी तो हो, तुम हमारी यहन हो । हम लोग एक माँ के पेट से वन्मे हैं। क्या एफ मुट्ठी अन्न नुम्हें यहाँ नहीं मिलेगा?" कुमुद के होठों पर यात थाई, पर वह पी गई। उसने कहा -"नहीं भाई; मुझे रचित नहीं, कि किसी पर भी अपने दुर्भाग्य की छाया ढालू । तुम कृपाफर मेरी इच्छा पूर्ण करदो।" अभी तक माई के मन में तार को दुर्भावना थी, पर वह कह सकता न था। उसे यहन पर मोध था, पर उसकी प्राकृति देखफर उससे कुछ कहा न गया। फिर भी वह बोला-"कुमुद, जो-कुछ सुना है, वह क्या सच है ?" "तुमने क्या सुना ?" भाई ने दोनों तारों का परिचय दिया । कुमुद ने सुनकर कहा-"तुम मेरे भाई हो, इम असहाय अवस्था में मेरे रुक हो । तुम्हें उचित है, फि इस सचाई की जाँच करो, और अपनी बहन का मूठे कलंक से उद्धार करो।" "तम यह सब दुष्टों का उड़ाया हुआ है ?" "यह तुम खोज कर नित्य परो।" "मैं तो तुमे देखते-ही समझ गया था। पर कुमुद. मात्र तुम यहीं रहो।"
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