उपन्यास २०७ तेरे लिये क्षमा नहीं है।" उससे वनपूर्वक छुरा राना की छाती में घुसेड़ दिया। एक हल्की चीत्कार कर, राला उण्डा पड़ गया। फेफड़े को आर-पार चोरता हुआ वह छुरा थाहर निकल भाया था। चुरे को वहीं छोड़कर युवक कुर्सी पर था वैग । मेज पर पड़े वस्त्र से उसने अपने हाथ का रक्त पोंछ लिया। अब मी रक्त की वेगवती धारा राना के शरीर से वह रही थी, और उसका शरीर हिल रहा था। उधर ध्यान न देकर पुक्क ने घण्टी बना दी। नौकर ने प्रवेश करके ना देखा-उसके होश उड़ गये । वह थर-थर काँपने लगा। युवक ने सहन-शान्त स्वर में कहा- "डरो मत, हमने उसे मार डाला है ! वह पापी था। पराई बहू-बेटियों की इजत विगाड़ता था। तुम जाओ, और पुलीस में इत्तला दे दो।" नौकर भागा---तण-भर में भगदड़ मच गई। पुलीस दल- बल सहित भागई। एफ मोटे-से इन्स्पेक्टर साहब पिस्तौल ताने कमरे में घुस आये। उन्होंने वहाँ से चिल्लाफर कहा-"खूनी, नयरदार ! भागने की चेष्टा न करना, वरना गोली मार दूंगा! माओ, चुपचाप हिरासत में थानायो !" युवक ने बैठे-ही बैठे आवाज़ दी-"इन्स्पेक्टर साहब, मैं यहाँ हूँ। इधर बानाइये इन्स्पेक्टर ने देखा-युवफ निर्भय कुर्सी पर बैठा है। उसके हाथ में कोई हथियार नहीं है। वे डरते-डरते उसके पास तक
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