उपन्यास २०५. "यही, कि आपने एक गरीय वेगुनाह असहाय लड़की के के साथ ऐसा क्यों किया?" "आप इस बात के पलनेवाले कौन है ?" "मैं एक साधारण भादमी के नाते मापसे पूछता हूँ।" "साधारण आदमियों से मैं बात नहीं काता। श्राप थमी बाहर चले ताइये !" "मैं जय तक अपना काम न कर लूंगा, वाहर न बाऊँगा।" "वह फाम क्या है ? "या तो श्राप सावित कोजिये, कि आप पे-कधर हैं, वरना मैं आपको सज़ा दूंगा।" "मुझे सजा दोगे, तुम-पदमारा"...!" "मैं तुम्हारी पाली को जमा करता हूँ ।" "पानी, तुम बाहर निकल जायो ! परना अभी नौकर बुलाता हूँ।" इतना कहकर राना साहब ने घण्टी पर हाथ धरा ही था, कि युवक ने उठकर घण्टी उनके हाथ से छीन ली, और कहा-"यह गाली भी मैंने माफ की, पर अय गालीन देना!" राजा थोदा भयभीत होकर युवक को देखने लगा। उसने कहा-~"पराई पञ्चायत में पढ़ने से तुम्हें फायदा?" "मैं फायदे-नुकसान के लिए कोई काम नहीं करता। समः झटपट जवाब दो!" "तुम्हें पड़ने का कोई हक नहीं।"
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/२०९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।