२०२ अमर अभिलापा सब से बड़े भारी अपराधी हैं। वे समाज में कदापि न रहने चाहिये । मैं उस पतित नर-पशु को अपने हायों से दण्ड दूंगा, जो इतना दुस्साहस कर सकता है कि किसी की बहु-बेटी को जबर्दस्ती अपनी वासना की पूर्ति के लिये प्रभा में कर ले।" रात बीत गई । प्रातःकाल होते ही प्रकाश ने स्नान करके भगवान् का असाधारण रीति से स्मरण फिया, और अपने संकल्प की पूर्ति का दृढ़ निश्चय करके वह होस्टल से बाहर निकला। न्यामा के घर पहुँचकर देखा-सुशीला वृद्धा माग के पास बैठी इछ घातचीत कर रही है । वे न्यामा बाबू को लेकर नीचे बैठक में थाये। स्यामा बाबू प्रकाश के बाल-सहचर, 'धौर सहपाटी थे। उनसे उनकी कोई बात छिपी न थी। परन्तु सुशीला का भेद उन्होंने होठ से बाहर नहीं किया था । श्यामा वावू भी इस भेद से अवगत न थे। बैठक में आकर उन्होंने संक्षेप से सुशीला की सभी बाते श्यामा को समझा दी। श्रन्त का इरादा ही उन्होंने छिपा लिया, और कहा-"अब कहो---ध्या तुम इसे तब तक. अपने यहाँ पाश्रय दोगे, जब तक हमारे घर जाने का उसका प्रबन्ध न हो जाय श्यामा बाबू ने सहमति जताते हुये कहा--"इस में धापत्ति क्या है ? परन्तु यह सोच लो, कि क्या यह ठीक होगा?" "बे-जीक क्या है ?"
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