उपन्यास १९९ an गाड़ीवाला चपरासी को बुला लाया। सुशीला ने उससे कहा-"प्रकाश बाबू को जानते हो? लॉ क्लास में पढ़ते हैं।" "नीहाँ, जानता हूँ।" "तबियत कैसी है?" "भी पढ़ रहे हैं!" "ज़रा उन्हें खयर करदो-सुशीला दहन थाई है, वह तुम्हें बुला रही हैं।" प्रकाश वाबू चपरासी से सुशीला का आगमन सुनकर अवाक् रह गये । इतनी रात गये, एकाएक वह आई क्यों? वे दौड़कर गाड़ी के निकट भाये। देखा-सुशीला बैठी रो रही है। उसने सारी घटना प्रकाश वावू को कह सुनाई । प्रकाश की आँखों में खून उतर आया। वे सोचने लगे-भव क्या करना चाहिये । क्षण-भर सोचकर उन्होंने कुछ निश्चय किया, और गाड़ी में बैठकर गाड़ीवान को शहर चलने की आज्ञा दी। गाड़ी फिर धड़धड़ाती हुई तंग और पेचीले बाजारों में से चली। एक मकान के द्वार पर गाड़ी रोककर प्रकाश ने पुकारा- "श्यामा! श्यामनाय !" एक मनुष्य मूर्ति ने खिड़की से सिर निकालकर कहा
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