उपन्यास "प्यारी मालती, देव-पूजा के इल विलास के काम नहीं प्रासफते। विलास से देव-पूजा प्रथम वस्तु है । विलास यह है, जिससे इन्द्रियाँ अपनी तृप्या को तृप्त करती है। पर देव-पूजा से प्रारमा तृप्त होती है; मेरा-तेरा सहयोग-सन्यन्ध- सम्भापण सव विलास है। -श्योंकि उससे इन्द्रियों के विषयों का अत्यन्त सानिध्य है। देव-पूला इन्द्रियों की वस्तु नहीं। इस अदृष्ट को न तभी देख सकती है, जय अपनी टि •को धन-चक्षुषों से दूर कर दे. उस चाणी को न तभी सुन सकती है, जब तेरी अपण-शक्ति फान के यन्त्र से अलग हो माय । वह अन्तनांद है; वह तुम में है। त बाहर से भीतर को ता, तुझे वह अनायास ही दीखेगा । नरदीन फर | घरा नहीं। यह माला ले, और उस घटष्ट देव को अर्पण कर, तो इसका वास्तविक अधिकारी है।" मालतो कुछ भी नहीं समझो । उसके माला सहाठयों पर एकत्रित लों के ढेर पर टाल दी, और फिर फूट-फूटकर कुमुद के गले से लिपटकर रोने लगी। कुमुद भी निल्पाय हो, मालती के फो न सहन कर, फूट पड़ी। दोनों स्त्री-हृदय रो रहे थे- एक अपने लिये, एक दूसरे के लिये । ,
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