. श्रमर अभिलापा कौन उसके पीछे चुपचाप था-बड़ा हुया है। अब वह तन्मय -होकर रामायण-पाठ कर रही थी, वय तिसी ने पीछे से एक सुन्दर फूल-माला उपके गले में डाल दी। मुद्र ने पीछे फिरफर देखा, मालती थी। मालती उसके पड़ोस की एक वकील की विधवा पन्या थी । कुमुद से उसका कई वपं फा स्नेह था। नव मालती विधवा थी, पौर सध्या तथा प्रतिष्टा और अधिकार की देवी थी, तभी से मालवी पर उसफा बहुत प्रेम था। मालती घपल स्वभाव की स्त्री थी। उसका रूप था, श्रायु थी, स्वास्य था, धन ल्या, पीहर का निर- विरोध वातावरण था, तिम् पर नई शिक्षा। वह वैश्य-धन पर अश्रद्धा करती थी । वन्य उस पर अचानक भाप होर पटा था। से वैधव्य की चाह न थी। उसकी आँखों में सुन्दर नगद रम रहा था। उनकी प्रफ इन्द्रियाँ नन्द चौर भोग की मिला- पिणी थीं, परन्तु गिधा और उन परिवार को मयांदा ने उसे संचमित पर दिया था। वैधम्य उस पर मनता न था। जुमुद इसीलिये उसे अत्यधिक प्यार करती थी। प्यार को प्यार जानता है ! वह समुद्र की प्राणों से प्यारी सखी थी । लय-नन 'कुमुद यहाँ पाती, मालती का अधिकांश समय यहाँ ही व्यतीत होता । इसके लिये फिती की रोक-टोक न थी। कुमुद मानती को बंधव्य-जीवन की पवित्रता बताती । वह श्रारमा का थान्मा के साथ प्राध्यामिक सम्बन्ध पर व्याख्या देती। वह मृत्यु के हस्ताक्षेप को नगण्य
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