१७८ अमर अभिलाषा 1 बाजार में महारमानी निकलते हैं, एफ-दो माँप गले में, या, कमर में अपत्य सुशोभित रहता है। यदि आपकी पोटी-छोटी माँप की मी ही है। शरीर पसरती, यलिए यौर र गहरा है। घयों में साधारण पुरता, धोती, सशर्ड और गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर पर भस्म का यथा-सा त्रिपुएट रहता है। कभी-कभी सिर पर साझा भी बाँध लेते हैं। पास पास के गाँवों में सभी गोपाल पौड़े को जानने हैं। उनके इनसे अनेक फाम निकलते हैं । मच तो यों है, कि गोपाल पौड़े न होते, जो इन गांववालों का जीना मुश्किल हो जाता । इनमें अनेक गुण है। भूत-प्रेत निकालना, जादू-टोना-मन्त्र-इलाब फरना, प्रेम की सुटफी, मारण-मोहन-दर्शफिरण-उच्चाटन-पादि सल प्रयोग इन्हें सिद्ध है। खियों के सो एफ-मान सब-कुछ पाटेजी ही और घे उन्हें भागती भी बहुत हैं । नित-नये थनेको साथ र से प्रथम पाँडेजी पी सैया में पहुंच जाने है। फिर भी कुछ लोग इन्हें महा-धूत, पाखण्डी, नीच और कुमागी फहकर इन्हें गालियाँ दिया करते हैं। कुछ फा तो यहाँ तक कथन है, कि इन्होंने उनकी बहु-बेटियों को पथ-प्रष्ट फर ढाला है; निससे वे कुएँ में गिरफर मर गई । जो हो, ऐसे ही हमारे गोपाल पाते है । अपना मान, सम्मान, इज्जत और कुल-फान बचाने के लिये जयनारा- यण को इन्हीं की सहायता की जरूरत पड़ी है। न जाने कितने भलेमानसों की पगड़ी ऐसे धूतों के अपवित्र चरणों में हराया सकरी होगी!!
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