उपन्यास १६३ कोई फरे भी तो क्या? इसी से उसकी तरफ एफ-गाँस विना देखे ही सब चले गये !! तब क्या भगवती अकेली मूर्हिता पढ़ी है ? नहीं पाठक, एक प्राणी है, जो उसे प्यार करता है। पयों प्यार करता है, सो हम नहीं जानते। दो बातें हो सकती है-~या तो वह उसके पाप को नहीं सममता और या उसे उसकी परवाह ही नहीं है । जो हो, वह प्यार करता अवश्य है । तब वह व्यक्ति कौन है? वह है हतमागिनी यालिका की थमागिनी यहन नारायणी। जब तक यह काण्ड होता रहा, वह चुपचाप पत्थर की तरह खड़ी रही। जप सब चले गये, वय वह धीरे-धीरे धरती पर पड़ी हुई यहन के पास घुटनों के यल ला बैठी। भगवती बढ़ी देर की होश में भागई थी। पर वह कुछ तो भय और लज्जा के मारे चुपचाप पड़ी हुई थी, कुछ तकलीफ के कारण उठने की शक्ति भी नहीं थी। नारायणी ने धीरे-धीरे उसकी पीठ पर हाथ फेरते-फेरते कहा-"तीनी!" भगवतीने सुन लिया, परन वह बोली,न मुँह ऊपर को उठाया। नारायणी एफ तो रोग और दुःख से छुटकारा पाकर चुकी थी, जिससे उसकी आकृति और वाणी अत्यन्त करणा-पूर्ण होगई थी-विस पर इस समय वह अत्यन्त दुःखी हो रही थी। सो उसने अत्यन्त फरुणाई स्वर से फिर पुकारा--"जीजी।" पर भगवती फिर वैसी ही रही। अब नारायणी रोने लगी। सत्र रो चुके थे, यही बच रही
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