उपन्यास कहा-"जरा होश में आकर बैठो, सर्वनाश होगया! अपनी 'पगड़ी की भी कुछ खवर है ?" अव हरनारायण उठकर कहने लगे-"कहती क्या हो ? क्या •सर्वनाश हुमा?" वे विना ही उत्तर की प्रतीक्षा के कमरे में 'भाकर पुर्जा पदने लगे। पुर्जे पर पेन्सिल से लिखा था- प्यारी भगवती! दो दिन जी ललचाकर तुमने एफदम इधर की सुध ही मुला दी। उस दिन तुम परसों जरूर जलाने का वादा करके गई थीं, पर वह 'परलों' भान तक न पाई-१५ दिन बीत गये है। छनिया रोज हारकर लौट भाती है । तुम भाई के ढर का बहाना करके टाल देती हो। पर यह डर तुम्हारा फजूल है। अब तक जैसे चुपचाप काम हुआ है, वैसे ही लदा होगा । मैंने ब्याह की वायत आर्य-समान के पंडित से पूछा था, सो उसने कहा कि उसके माँयापों को राजी परलो, व्याह हम करा देंगे । सो तुम मौका पाकर उनको टटोलना। पका वायदा फरो-फय मिलोगी। मुझे एक पल सौ-सौ वर्ष का फटता है। ज्यादा क्या लिखू ? साज थोड़ा कुछ भेजता हूँ। छनिया को जवाय देना । चिट्ठी पढ़कर फाड़ डालना। तुम्हारा दास, हरगोविन्द चिट्ठी पढ़कर हरनारायण के तो होश उड़ गये । वे भौंचक से
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