१४८ अमर अभिलाषा कमी न थी । जय-जव वह सुसराल में रहती-बम, एक नमवंट उसके कमरे में दिन-भर बना रहता था। वह वास्तव में सिर्फ उदार और मिष्ट-मापिणी ही न थी। यह सास, ससुर, निठानी और नरेंदों की छोटी-बड़ी सेवाएँ दास. वासी के रहते अपने हाथों से करती । एक वक्त का भोजन भी स्वयं बनाती। घर की किसी भी स्त्रीको काम हीन करने देती। निठानियों के बच्चों का लाड़-प्यार करते दिन बीतता था । नये- नये वस्त्र पहनाना,खिलाना, देना, न्हलाना-धुलाना उसका धन्धा' या । सव से 'जी' कहकर योजना और हुक्म के साथ उठ खड़ा होना उसका काम था। निठानी-पोरानी कुपढ़ देहाती स्त्रियाँ थीं। सास भोली और वृद्धा यी । प्रायः घर गन्दा, अव्यवस्थित और देहाती ढंग पर पड़ा' रहता । उसे धादत थी, अँग्रेज़ी ढंग से सने गले में रहने की- घड़ी नसासत और सुघराई के साथ । लो, वह थावे-ही वर का संस्कार शुरू कर देती थी। उसने नौकरों के वेतन भी दवा दिये थे । परज, घर में सभी उससे सन्तुष्ट और प्रसवये, और वहसम के हाय की पुतली, सब के हृदय की दुलारी, मौर सय के मांस की नर थी । वह साध्वी, गुणवती, सौभाग्यवती स्त्री भान कुछ और ही वेश में उस घर में आरही थी। वह विधवा' थी, अब उसका सर्वस्व नष्ट होचुका था। क्या संसार में हिन्दुओं के विधवा- तत्व से भी भयानक कोई वस्तु है-वहाँ सब संसार पलट जाता है? यह मलिन वस्त्र पहने, धरती में पड़ी रहती। पास-पड़ोसिम,
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