उपन्यास बीच में जय बेहोश होनाती, तब कुछ मिनिट को वह शान्त हो- जाती, पर होश में थाते ही वद फिर उसी भौति चिल्लाने लगती। थन्ततः यायू साहब की अन्येष्टि-क्रिया को गई। तीन दिन सब वहीं रहे। इसके बाद यद-वितित कुमुद रूप, शोमा, सौभाग्य सबसे भ्रष्ट होकर विधवा के वेश में पति-घर को लौटी। इक्कीसवाँ परिच्छेद कुमुद की मसुराल यहुत यदी थी। ससुर, मास, घार निकानी, चोरानी, देवर, जेर, उनके बच्चे, दो कुंवारी, एक च्याही, एक विधवा ननंद, धौर एफ विधवा मावनी थी। दो-चार दास-दासी भी थे । यदी भारी हवेली थी। मुद की सभी गतिर करते थे। साल उसे कमाऊ पुत्र की यह समझफर भांखों पर रखती थी, कुमुद नप फभी दस-बीस दिन को बाती, छायों-हाय उसकी खातिर होती । ननद-निठानी उससे कुछ प्राप्त करने के लालच में उसकी ललो-चप्पो में लगी रहती । नौकर-दासी इनाम-कपड़ा पाने के लोम में उसकी बढ़ी सेवा बनाते । कुमुद मन की उदार, हृदय की मधुर और हाय की सुनी थी। वह बढी हसमुख भी थी। हास्य का प्रत्यारा सदैव उसके मुख से मदा करता था। उसकी सखीसहेलियों की भी स
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१५१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।