उपन्यास कुमुद कुछ क्षण रुकी । इसके बाद उसे नौकर की गोद में देकर कहा-"इसे दूसरे कमरे में लेना।" इसके बाद ही वह पंति का सिर गोद में लेकर बैठ गई । दो दिन व्यतीत होगये । कुमुद ने अन्न-जन भी नहीं किया है। वह परमेश्वर से लौ लगाये बैठी है। उसके सौभाग्य पर भयानक समय आया है। क्या यह समय टल नायगा? वह बारम्बार ईश्वर को पुकारती थी, रोती थी, और आप ही अपना बाँदस भी बाँधती थी। ईश्वर को छोड़कर उसका कहीं और . नथा। दूसरे दिन तीसरे पहर घर के सभी लोग वहाँ भागये । शहर के ऑफीसरों ने भी अच्छे-से-अच्छा प्रबन्ध कर दिया। कई प्रतिष्ठित डॉक्टरों ने मिलकर चिकित्सा प्रारम्भ करदी। परन्तु कुमुद स्थिर होकर पति के पलंग के पास बैठी है। डॉक्टर की योजना पर ठीक समय पर दवा और पथ्य देती है। मल- मुत्र स्वयं साफ करती है। परन्तु भावी प्रवल है । सब-कुछ होने पर भी बाबू साहब की दशा क्षण-क्षण पर खराब होती जारही है। लोगों की प्राश भी टूटने लगी। लोग हताश और अनमने होने लगे। कुमुद के लिये यह मानों वन-सम्वाद था। वह भाशा के कच्चे तार के सहारे चुपचाप बैठी अपना कर्तव्य पालन कर रही थी। एक बार वह बेटी-बैठी चकर खाकर गिर पड़ी। सिर में से रक्त की धार यह पड़ी। वह बेहोश होगई । डॉक्टरों ने उपचार किया। पर होग 9a
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