१४४ अमर अमिलापा . . बावू साहब की रात कैसे कटी-यह जानने का कोई उपाय वेचारी कुमुद के पास न था । नौकर इतना योग्य न था, कि वह कुछ खवर लाता | फिर, वह उसे भेजते हुए भय खाती थी, कि वह अकेली कैसे रहेगी? विवश, वह बच्चे को छाती से लगा, धर्म- शाला में रात काटने को चली गई, और वही कठिनता से उसमें राव फटी। अभी प्रभात हुशा ही था, कि पुलिस के दो-चीन धादमी वहाँ आये, और उसे सूचना दी, कि थापके पति को प्लेग का थाक्रमण हुना है, और टनकी हालत खतरनाक है। कमिश्नर साहब ने तार के जरिये उनके ठहरने और चिकित्सा का पृथक् प्रबन्ध कर दिया है। अव थाप चलकर उनके पास ठहर सकती है। सय-कुछ सुनकर कुमुद को काठ मार गया । वह मानो संज्ञा- विहीन होगई । ईश्वर को क्या करना है इसकी किसे खबर ? वह झटपट पति की सेवा में जाने को तैयार होगई। अस्पताल के एक पृथक् और प्रशस्त कमरे में धावू साहब का प्रबन्ध किया गया था। वे मूर्षित अवस्था में पड़े हुए थे । कुमुद उनकी तरफ दौड़ी। परिचारिका ने कहा- "उत्तम हो, थाप इनसे संस्पर्श न करें। यह छूत का भयानक रोग है, आप पर आंच पाने का भय है।" "श्रोह, मुझे उसका भय नहीं, यह समय इन बातों के विचार का नहीं।" "परन्तु बच्चे का नयाल तो पापको रखना है।"
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