उपन्यास १४३ "मैं हिटरी-कलक्टर हूँ, और सकारी काम से जारहा हूँ।" "मैं भी सरकारी काम कर रहा हूँ। मेरा फर्ज है, कि मैं किसी भी सन्दिग्ध रोगी को आगे न जाने दूं।" "पर मैं रोगी नहीं हूँ।" "क्षमा कीनिये, यह निर्णय करना मेरा काम है।" "मैं अभी कमिश्नर को तार दूंगा।" "धाप चाहे भी कुछ करें।" "तय सरकारी काम में यदि विलम्ब हुना, तो उसके जिम्मे- दार भाप है।" "इन वातों से मुझे कोई सरोकार नहीं।" "नर, मेरे साथ मेरी स्त्री और नौकर है, उन्हें श्राप मेरे साथ रहने की व्यवस्था कर देंगे?" "यह असम्भव है।" "तब वे लोग अलहदा ठहरेंगे कहाँ?" "यह मेरे विचार का विपय नहीं।" "श्राप बड़े निर्दयी प्रतीत होते हैं।" डॉक्टर क्रुद्ध होकर पिना जवाब दिये फॉन्स्टेबल को संकेत कर, गाड़ी से उतर गये। विवश, बाबू साहब को उतरना पड़ा। उन्होंने स्त्री से कहा-"तुम भोल के साथ धर्मशाला में ठहरो, मैं वार मेनकर सुबह तक सब प्रबन्ध कर लूंगा।" कुमुद ने धैर्य से पति की विवशता देख, आज्ञा माँगी, और पुलिस के पहरे में बाबू साहब अस्पताल में पहुँच गये ।
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