१४० अमर अभिलाषा और उनकी पत्नी सैफिगढ-पलास के ढव्ये में बैठे थे । वच्चा सोरहा था। स्त्री ने कहा-"आप इस समय इतने उदास क्यों है ?" "कह नहीं सकता, दिल ऐसा क्यों होरहा है । ऐसा वो कभी नहीं हुआ था।" "रान देर तक श्रोस में भी तो आप फिरते रहे । जरा पाए लेट जाइये न ।" या साहय लेट गये, परन्तु उन्हें नींद नहीं आई। थोड़ी देर में स्टेशन थागया । यहाँ सरकारी प्रबन्ध था। यहाँ डॉक्टर, पुलिस और मजिस्ट्रेट सब उपस्थित थे, और प्रत्येक यात्री की स्वास्थ्य परीक्षा होती थी, और चेष्टा की नाती थी, कि कोई रोगा- क्रान्त व्यक्ति श्रागे न जाने पावे । स्टेशन पर गादी खड़े होते ही मुसाफिरों के चीत्कार से स्टेशन गूंज उठा । प्रत्येक बच्चे को चायी बन्द थी। सभी लोग डॉक्टरी परीक्षा से घबरा रहे थे। दोपहर होगया था, देर से पानी न मिला था। अब वे पानी-पानी चिल्ला रहे थे। एक बुदिया ने कहा-"हाय ! बच्चे को बुखार होरहा है, अब क्या करूंगी?" दूसरी बोली- ये मुये डॉक्टर पकड़-पकड़कर क्या करते हैं ?"
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