वीसवाँ परिच्छेद इस परिच्छेद में हम अपने पाठकों को एक सर्वथा नवीन प्राणी का परिचय दंगे। हमारी कहानी में पान सय से पवित्र भोर सय से महत्वपूर्ण है। शरद् की विशुद्ध रात्रि थी। याहर मानों दूध यखेर दिया गया था । शीतल चन्द्रमा की चाँदनी, मन्द पपन और प्रशान्त रात्रि, इससे भी अधिक और चाहिये क्या ? नगर के बाहर एफ बँगला था । वह उसी उलाली रानि में खड़ा, मानों दूध में नहा रहा था। सामने प्रशस्त हरी घास फा लॉन, एक अनिर्वचनीप सौन्दर्य यखेर रहा था। दो प्राणी धीरे-धीरे इन जॉन परटहल रहे थे-एक पुरुप, एक स्त्री। दोनों परस्पर सटे हुए, हाय-से-हाय मिलाये, दीन-दुनिया से दूर प्रगाढ़ प्रेम में तन्मय-मानो जगत् में वे दोनों परस्पर एक-दूसरे की हस्ती को छोड़कर और कुछ जानते ही न थे। पुरुष ने कहा-"प्रिये ! अधीर न हो,नंग के प्रबन्ध के लिये मुझे फल-ही देहात में दौरे पर जाना होगा। सरकारी धाज्ञा है, चारा नहीं । यहाँ सारा शहर भाग गया है। मेरे
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