उपन्यास समझाना पड़ेगा इन्हें ! पहले दिन न नाती, तो एक बात भी थी। अब तो सब-कुछ होगया । जो सब वात खोल दी नाय, तो कहो, कैसी दने ?" भगवती किंकर्तव्य-विमूद की तरह बैठी-बैठी छनिया का मुंह ताकने लगी। छनिया ने कहा-"चलो, अब देर का मौका नहीं है।" भगवती श्रव भी भयभीत दृष्टि से उसे देख रही थी। उसकी लालसा भड़क गई थी। यह कष्ट, लज्जा, भय और कामना के थपेड़ों में पड़कर हतबुद्धि होगई थीं। उसने कहा "छनिया, यह फाम अच्छा नहीं । तू ना, मैं नहीं जाऊँगी। मैं जहर खाकर मर जाऊँगी!" "पगली, मरेंगे तेरे दुश्मन, श्रमी तू बहुत कुछ देखेगी। क्या तुझे मालूम नहीं, वे तेरे साथ पुनाह की बात-चीत कर भगवती अधिक देर तक स्थिर न रह सकी। छनिया फिर उसे उस पाप-पथ पर ले चली। फिर तो यह पथ खूब चला। उन सब बातों को लिखकर हम अपनी लेखनी को फलक्षित न करेंगे। यही यथेष्ट है, कि भगवती खब सावधानी से इस पाप- सागर में गोते लगाने लगी।।
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