१३४ अमर अमिलापा "यह वेहोश होगई है।" "सो तो होना ही था, तुमसे तनिक धीरन न रखा गया। इतनी कोमल लड़की से फहीं ऐसा व्यवहार किया जाता है ? मैं उसे धीरे-धीरे श्राप ही रास्ते पर ले पाती।" हरगोविन्द ने घबराई जवान से कहा-"उसे चलकर देख तो सही।" "धच्चा, मेरा इनाम दो, तुम्हारा सब काम ठीक ठीक-ठीक होगया है।" "इनाम क्या मारा जाता है, चलकर उसे ठीक वो फरो।" "यह वात नूठी है-पहले इनाम और पीड़े काम ।" हरगोविन्द ने पाँच रुपये उसके हाथ पर रखकर कहा-"और पीछे खुश करेंगे। "अच्छा, यही सही।" कहकर दुनिया भीतर पाई। भगवती अभी तक बेहोश थी, पर इन लोगों के भीतर पहुंचते ही रसे होश पाया। इलिया को देखकर व्ह गाय की भाँति उकरा उठी। छनिया ने कहा-"धवरा मत, अभी सब ठीक हुमा जाता है।" बालिका लज्जा और पश्चात्ताप से छटपटाने और रोने लगी। उसने उठने की चेष्टा की, पर सिर में परमाने से गिर पड़ी। छजिया बढ़ी ही घाघ थी। उसने ऐसे-ऐसे अनेक अवसर 1
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