उपन्यास देख-गाल रही है। तुझे मुम पर तरस नहीं पाता?...... हाय ! अभागिनी भान लुट गई। नीच दुष्ट ने बलात्कार से असहाया बालिका का सर्वनाश कर डाला!! ऐ तीस करोड भारत के नर-नारियों! तुम्हारे हृदय में कुछ सहानुभूति हो, तो इम दलित कुसुम-फनी को आश्वासन दो। अठारहवाँ परिच्छेद भयकर सूझान था चुकने के याद प्रकृति एकदम शान्त हो- जाती है। नर-पिशाच हरगोविन्द जब असहाया यालिका का सर्वनाश कर चुका, तो उसे होश धाया, उसे थाल्म-बोध हुआ। उसने मन-ही-मन लज्जा, भय, ग्लानि और सन्ताप का अनुभव फिया बारम्बार अपने पापको धिकारने लगा। तदनन्तर कुछ शान्त होकर उसने शय्या की तरफ देखा उस समय पालिका मूच्छित पड़ी हुई थी, उसका चेहरा मुर्दे के समान होरहा था। उसने उसके मस्तक पर हाय रखकर जगाना चाहा, पर देखा- मस्तक बर्फ के समान शीतल होरहा है, नाड़ी क्षीण है। मधी युवक एकदम घयरा गया। उसने भगवती के मुख पर पानी के बीटे देकर चैतन्य करने की चेष्टा की, पर कुछ न हुमा, भव यह छनिया को बुलाने लपका। छलिया ने रंग-ढंग देखकर कहा-"क्यों, हुमा क्या?"
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