उपन्यास ११३ माइ-पुचकारकर बोली-"वाह नी ! अपनी रानी को हम वहा अच्छा कुरता बनावगे-मल्लर लगाकर । किरपू को दिखावेंगे भी नहीं।" किरपू ने मुंह फुलाफर कहा--"छुखिया, हमें कुलता न दिखावेगी?" सुखिया ने सिर हिलाकर साफ़ इन्कार कर दिया। कि.पू ने कहा-"अच्छा, हम बी नई दिखावेंगे।" सुखिया ने उसको कुछ भी परवाह न की । इतने ही में हर- देई उधर से भा निकली । उसने कहा-"क्या है री सुखिया ?" "बीवी हमें कुलता देगी।" हरदेई ने हसकर एक धप उसकी पीठ में जमाकर कहा- "मुण्डो ! बुआ कहा पर ।" सुखिया ने कहा-"नई बीवी। "जा रॉड!" कहकर वह एक तरफ चल दी। अचानक उसने द्वार की तरफ़ देखकर कहा-"थोहो छलिया ! पान तू किघर रास्ता भूल गई ? श्रान ज़रूर मह बरसेगा!" सब ने घाँख उठाकर देखा निया नायन थारही है। गृहिणीने हँसकर कहा-"प्रारी निया, बड़े दिनों में आई।" धनिया ने हँसते-हंसते गृहिणी के पैर छूकर कहा-"क्या कहूँ ताईजी, घर-गिरस्त के काम-धन्धों को वो तुम जानती हो ? (भगवती की भोर देखकर) हो, भगो है ! भरी राजी है ? बड़ी हार रही है !"
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