११० अमर अभिलापा युवक खड़ा देखता रहा । भगवती लपकार चन्पा के घर में घुस गई। चौदहवाँ परिच्छेद किरम ने दादी के नाक में दम कर दिया। उसे करते की जिद चढ़ गई है। गोपाल का नया उरता वह देख पाया है, अब वैसी ही करता वह पहनेगा। पहले वह अपनी माँ के पास गया, पर हरदेई ने एक ही घमूळे में उसका मिज़ान शेक कर दिया। फिर हताश न हुआ, वह दादी के सिर हो गया। उसने बहुतेरा बहलाया, पर उसने एक न मुनी । अन्त में हारकर गृहिणी ने अपनी कपड़ों की बुञ्ची खोली, और ढोरिया निकालकर, पुरवा सोने लगी। झिरपू उसके सामने प्रपन्नतापूर्वक पालथी मारकर बैठ गया। दादी ने बैंची चलाते-चलाते कहा-"देख फिर! यह कुरता सीकर सन्दूक में धर देंगे! तीनों के मेले पर पहनकर दादा के साथ मेले में जाइयो।" फिरप ने बड़े ध्यान से दादी की बात सुनकर कहा-"नई छन्दूक में ?" "ही-हाँ, नई सन्दूक में रख देंगे।" किरपू ने कुछ देर सोचकर कहा-"तो तीज कर भावेगी ?"
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