पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१०६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०४ मर अभिलाषा घर 31 विश्राम कर रहे थे। इसी समय भगवती पैर बदाये, चम्पा के जा रही थी। इतने ही में पीछे से किसी ने थावाज़ दी। "भगवती ! भगवती! कहाँ ना रही है?" भगवती ने पीछे फिरकर देखा, एक युवक उसकी भोर लपका हुआ पा रहा है। उसे टस सुनसान में अपनी तरफ आता देख, भगवती पहले तो डर गई, और चाहा, फि मागकर चम्पा के घर में घुस नाऊँ, पर इतने में ही उसने पास थाफर कहा- "भगवती ! अच्छी तो है " "हाँ, तुम कौन हो?" यह कहकर भगवती उसका मुंह देखने लगी। उसने हँसकर कहा-"तुम मुझे नहीं मानती ? तुम्हारे भाई तो मेरे बड़े दोस्त है।" "तुम्हारा नाम?" "गोविन्दसहाय।" "तुम गोविन्दसहाय हो?" "हाँ, यत्र पहचान गई ?" "पश्चिम तरल बनियों के मुहल्ले में रहते हो?" "हाँ, तुम कही जा रही हो?" "चम्पा के घर।" "चम्पा कौन "रूपनारायण-चाचा की बड़की।" "सममा-वह तुम्हारी सहेली होगी ?" भगवती ने कुछ मुस्कराफर सिर हिला दिया। युवक ने उसके